गुरुवार, नवंबर 12, 2009

मनु शर्मा का पैरोल और मीडिया

पैरोल नियमों के उल्लंघन मामले में दोबारा विवादों में आए जेसिका लाल हत्याकाण्ड के मुख्य अभियुक्त मनु शर्मा ने मंगलवार 10 नवंबर को खुद ही तिहाड़ जेल में आत्मसमर्पण कर दिया। मनु शर्मा दो माह के पैरोल पर था। पैरोल की अवधि 22 नवम्बर तक थी लेकिन पैरोल शर्तो के उल्लंघन की हो रही चौतरफा आलोचना को देखते हुए वह खुद ही जेल वापस लौट गया। मीडिया इसे अपनी बड़ी जीत मान रहा है। लेकिन इस विवाद के कई अनदेखे पहलू हैं जिनपर ध्यान दिया जाए तो पता चलेगा कि क्या यह वास्तव में मीडिया की जीत है या फिर कुछ और?

दरअसल मनु को 23 सितंबर को ही पैरोल पर जाने की इजाजत मिल गई थी। उस वक्त किसी अदने से अखबार या टीवी चैनल में इसकी कोई छोटी-मोटी खबर तक नहीं आई। जैसा कि मीडिया रिपोर्ट भी बता रहे हैं, मनु हरियाणा विधानसभा चुनाव में खुलेआम अपने पिता का प्रचार करता घूम रहा था। तो क्या उस वक्त किसी अखबार या टीवी के रिपोर्टर को वह नजर नहीं आया? मनु हरियाणा के धनाढ्य राजनेता विनोद शर्मा का बेटा है और एक नवोदित मीडिया समूह का मालिक भी। आम आदमी के मन में यह सवाल उभर सकता है कि क्या उस समय यह खबर 'मैनेज' कर दी गई थी? मीडिया को इसका जवाब देना होगा।

मनु को पैरोल देते समय जिन तर्कों का सहारा लिया गया वह भी कम उटपटांग नहीं थे। उसने अपनी दरख्वास्त में अपनी मां की बीमारी और पारिवारिक व्यवसाय के 'जरूरी' काम निपटाने के अलावे एक कारण अपनी दादी के अंतिम संस्कार में हिस्सा लेना भी बताया था। दिलचस्प बात यह है कि मनु शर्मा की दादी की मृत्यु करीब साल भर पहले हो चुकी है। खबर चाहे कितनी भी सनसनीखेज़ क्यों न हो, बासी है। अगर किसी अखबार में दो या तीन दिन पुरानी खबर भी आती है तो उसे बासी करार देते हुए भीतर के पन्नों में जगह दी जाती है, लेकिन यहां दो महीने पुरानी खबर भी इस तरह छप रही है मानों बिल्कुल ताजी हो। क्या यह मीडिया की नाकामी नहीं है?

इसके अलावा मनु के दिल्ली के बार में घूमने की खबर भी टुकड़े-टुकड़े में ही आई। पहले बताया गया कि वह दिल्ली के किसी बार में घूमता पाया गया। दैनिक भाष्कर ने तो चंडीगढ़ के बार की खबर प्रकाशित कर दी। फिर खबर आई कि उसने हंगामा मचाया और भाग गया। फिर पता चला कि किसी पुलिस अधिकारी के बेटे से उसका झगड़ा हुआ था। आखिर में जा कर पता चला कि दिल्ली के पुलिस कमिश्नर वाई एस डडवाल के ही बेटे से मनु का झगड़ा हुआ था। खास बात यह है कि डडवाल ने शुरु से मीडिया के सामने एक पारदर्शी व्यक्तित्व की छवि रखी है और इस मामले में भी उन्होंने इसके अनुरूप ही बर्ताव रखा। यहां तक कि उन्होंने थापर समूह के युवा उद्योगपति की गिरफ्तारी के मामले में अपने बेटे से भी पूछताछ के आदेश दिलवा दिए। फिर मीडिया की क्या मजबूरी थी इस खबर को इतना पेंचीदा बनाने की? सवाल यह भी उठता है कि अगर इतने महत्वपूर्ण व्यक्ति के बेटे से मनु का झगड़ा नहीं हुआ होता तो मनु का पैरोल पर पार्टी करना भी किसी अखबार के संज्ञान में नहीं आता?

इस बासी खबर को दिखाने में समाचार चैनल भले ही चूक गए हों पर ताज़ा चर्चा करने में कोई पीछे नहीं रहा। चर्चा क्या, राजनीतिक खींचतान ही ज्यादा दिखी। जो ऐसी उटपटांग बकवास करने में दिलचस्पी रखते हैं उन्हें भी चैनलों ने पूरा मौका दिया और टीआरपी बटोरने की कोशिश की। टाइम्स नाउ ने तो पत्रकारों के साथ-साथ फिल्म में कॉमेडियन का किरदार निभाने वाले ऐड एजेंसी मालिक सुहैल सेठ तक को अपने पैनल में बिठा लिया। कांग्रेस नेता जयंती नटराजन ने तो यहां तक कह दिया कि चैनल वालों ने पैनल बनाने में चालबाजी की है।

गौरतलब है कि जेसिका लाल की हत्या के बाद न सिर्फ राजनीतिक बल्कि तथाकथित संभ्रांत तबके के कुछ लोगों ने भी मनु को बचाने की भरसक कोशिश की। अगर मीडिया और जनता का एक बड़ा वर्ग सामने न आया होता तो उसे सजा भी नहीं मिल पाती। मनु को छूट देने के मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने पुलिस को कड़ी फटकार लगाई थी और स्वत: संज्ञान लेते हुए मामले को दोबारा शुरु किया था। यह सच है कि इस मामले में कहां किस स्तर पर चूक हुई है उसकी जांच होनी चाहिए और इस बारे में सब कुछ जनता के सामने आना चाहिए, लेकिन मीडिया को भी आत्ममंथन करने की जरूरत है।

बुधवार, नवंबर 04, 2009

आखिरकार मैंने भी अपना ब्लॉग शुरु कर ही दिया। मैंने सोचा, कि जब हर कोई ब्लॉग के जरिए दुनिया भर से सुख-दुख, आचार-विचार और हाल-समाचार लेने-देने में जुटा है तो मैं क्यों पीछे रहूं? इस ब्लॉग के जरिए मेरी कोशिश रहेगी कि मैं बिना किसी को ठेस पहुंचाए, बिना कोई अप्रिय बात किए अपने विचारों से लोगों को अवगत करा सकूं।
धन्यवाद