मंगलवार, मार्च 30, 2010

राष्ट्रगान पर एक नजर

मैं बचपन से ही सोचता आया था कि आखिर ये कौन 'अधिनायक' और 'भारत भाग्य विधाता' हैं जिनके जयघोष से हम अपने राष्ट्रगान की शुरुआत करते हैं?
मुझे लगता था यह मातृभूमि भारत का ही नाम होगा, लेकिन हाल में एक मित्र के साथ इस पर चर्चा छिड़ी तो कई बातें सामने आईं...
जरा आप भी गौर करें...
शुरुआत करें इसके इतिहास से...
1- जन गण मन.. को नोबल विजेता गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर ने 1911 में लिखा था किंग जॉर्ज पंचम के सम्मान में जब वे महारानी के साथ भारत पधारने वाले थे (इंडिया गेट भी उसी दौरान बना था जिसपर ब्रिटिश सरकार के वफादार बलिदानी सिपाहियों के नाम खुदवाए गए थे, और जिस पर आज भी भारत के राष्ट्रपति सभी सेनाध्यक्षों के साथ गणतंत्र दिवस की परेड से पहले फूल चढ़ाने जाते हैं)। इसे 1912 में जॉर्ज के दरबार में गाया भी गया था। कहा जाता है कि पंडित मोतीलाल नेहरू ने इसमें पांच और अंतरे जुड़वाए थे जो किंग और क्वीन के सम्मान में थे।
2- इसके मूल बंगाली संस्करण में भी सिर्फ पंजाब, सिंध, गुजरात, मराठा.. आदि राज्यों का उल्लेख था जो सीधे ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन थे। गौर करने वाली बात है कि कश्मीर, राजस्थान आंध्र, मैसूर केरल आदि किसी भी देशी रियासत या राज्य का जिक्र नहीं था जो कि तब भी अखंड भारत के महत्वपूर्ण अंग थे। हिंद महासागर और अरब सागर का भी जिक्र नहीं है जो उस वक्त सीधे तौर पर पुर्तगालियों के नियंत्रण में थे।
3- 'जन गण मन अधिनायक' सीधे तौर पर जॉर्ज पंचम को बुलाया गया था जो भारत के भाग्य विधाता थे।
अगले अंतरों के भी अर्थ उन्हीं का महिमा मंडन करते हैं।
4- पंजाब सिंध गुजरात मराठा द्राविड़ उत्कल बंग विंध्य हिमांचल जमुना गंगा उच्छल जलधि तरंग... इन सभी राज्यों, पर्वतों और नदियों के तट पर रहने वाले आपके आशीर्वचनों के अभिलाषी हैं
5- तव शुभ नामे जागे, तव शुभ आशिष मांगे, गाये तव जय गाथा... (भारतीय) लोग आपका शुभ नाम लेते हुए जागते हैं और आपसे शुभ आशीर्वाद मांगते हैं। इसके बाद आपकी जयगाथा गाते हैं।
6- जन गण मंगल दायक जय हे भारत भाग्य विधाता... हे (भारतीय) जन गण को मंगल प्रदान करने वाले, हे भारत के भाग्य विधाता, आपकी जय हो.. जय हो, जय हो, जय हो.. हर तरफ जय ही जय हो

पूरी कविता में कहीं भी भारत का जिक्र नहीं है। ये मातृभूमि की वंदना नहीं, बल्कि महारानी और महाराजा का गुणगान था।
आगे से जब भी आप राष्ट्रगान के तौर पर जन गण मन अधिनायक दोहराएं, एक बार विचार अवश्य करें कि पिछले सा साठ वर्षों से भी अधिक समय से आखिर किसकी जय कर रहे हैं हम डेढ़ अरब भारतवासी?
क्या हम कभी समझ पाएंगे ???

पत्रकारों का बीमा

मित्रों, पिछले दिनों की व्यस्तताओं में एक व्यस्तता यह भी थी कि हमारी संस्था राष्ट्रीय पत्रकार कल्याण ट्रस्ट(www.patrakar.org)कुछ पत्रकार भाइयों के लिए कई कल्याणकारी कार्यों में जुटी थी। पिछले दिनों संस्था ने नोएडा के कुछ पत्रकारों का बीमा भी करवाया। प्रस्तुत है bhadas4media पर छपी खबर:

राष्ट्रीय पत्रकार कल्याण ट्रस्ट ने नोएडा शहर के पत्रकारों का दुर्घटना बीमा करवाया है। गुरुवार को नोएडा के सेक्टर 6 स्थित एन.ई.ए. सभागार में पहले चरण में बीमा से लाभान्वित करीब 30 पत्रकारों को उनकी पॉलिसी सौंपी गई। यह समारोह यूपी वर्किंग जर्नलिस्ट एसोशिएसन और राष्ट्रीय पत्रकार कल्याण ट्रस्ट के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित हुआ। इस अवसर पर फोनरवा के अध्यक्ष एनपी सिंह, सूचना अपर निदेशक दिनेश गुप्ता, देशबंधु के संपादक अमिताभ अग्निहोत्री मौजूद थे।

राष्ट्रीय पत्रकार कल्याण ट्रस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी और नोएडा प्रभारी नरेंद्र भाटी ने बताया कि जो पत्रकार पहले चरण में इस योजना का लाभ नहीं उठा पाए हैं, उन्हें भी निराश होने की जरूरत नहीं है, क्योंकि अभी पहले चरण की पॉलिसियां ही मिली हैं। भाटी के मुताबिक उनकी संस्था न सिर्फ पत्रकारों का बीमा करवाती है, बल्कि गरीब पत्रकारों को निजी तौर पर भी मदद करती है। ट्रस्ट ने कई गरीब पत्रकार बंधुओं की बहनों और बेटियों की शादी भी करवाई है। ट्रस्ट के अध्यक्ष धीरज भारद्वाज ने बताया कि ट्रस्ट की देश भर में फैली शाखाओं में बीमा के लिए फॉर्म भरने का कार्य प्रगति पर है और ज्यादा से ज्यादा पत्रकारों को इसका लाभ पहुंचाने की कोशिश की जाएगी। भारद्वाज के मुताबिक अभी तक ट्रस्ट ने कोई कॉरपोरेट या सरकारी मदद नहीं हासिल की है, लेकिन पत्रकारों के हित में सभी को साथ जोड़ने की तैयारी है।

देरी के लिए क्षमा

इंसान की जिंदगी व्यस्तताओं का एक संकलन है। पिछले कई महीने ऐसी व्यस्तता रही कि ब्लॉग लिखने का समय ही नहीं निकाल पाया। मुझे मालूम है कि ब्लॉगिंग के मेरे मित्रों को मेरे इस रवैये से निराशा हुई होगी, लेकिन उनसे कर बद्ध विनती है कि मजबूरियों को भी समझें।

पिछले दिनों वैसे तो काफी कुछ लिखा, लेकिन कोई भी लेख ऐसा नहीं लगा कि आपको कोई ताजा चीज पेश कर रहा हूं। हालांकि इस पर कई मित्रों ने ऐतराज़ भी जाहिर किया। कहने लगे, "कुछ भी लिख दिया करो, ताजा या बासी पढ़ने वाले तय कर लेंगे।" मैने भी सोचा कि जब ब्लॉग ही है तो संकोच कैसा?

अब फिर लिखने लगा हूं... देखता हूं कब तक रह पाता हूं?