शनिवार, अगस्त 07, 2010

मोदी की जीत और मीडीया की हार?

फिर निगेटिव पब्लिसिटी का फायदा मिलेगा मोदी को

गोधरा दंगों के बाद जब गुजरात का चुनाव जीत कर नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के पत्रकारों को गुजरात भवन बुलाया तब उस ऐतिहासिक प्रेस कांफ्रेंस में मैं भी मौजूद था. देश-विदेश के सैकड़ों पत्रकारों और मीडीयाकर्मियों से खचाखच भरे हॉल को संबोधित करते हुए दंभ से भरी विजयी मुस्कान के साथ नव निर्वाचित मुख्यमंत्री ने कहा था, “गुजरात चुनावों की विजय में सहयोग के लिए आप सभी पत्रकार बंधुओं को धन्यवाद.” खिसियाने अंदाज में पत्रकार मुसकुराए तो कैमरामैन और तकनीशीयन ठहाके मार कर हंस पड़े. यह हंसी उन धुरंधरों पर थी जो दिन रात एक करके मोदी के खिलाफ खबरें और बयान जुटाने में लगे थे, लेकिन हुआ उसका उल्टा. मोदी ने पूरी प्रेस कांफ्रेंस में मीडीया को चिढ़ा चिढ़ा कर अपनी उपलब्धियां गिनाईं.
बाद में मैंने भोजन के दौरान मोदी पर एक हल्का सा सवाल दागा. मैंने पूछा, आप जो मीडीया को अपनी निगेटिव रिपोर्टिंग के लिए कोस रहे थे, “क्या देश भर के पत्रकार यह सब बिना आपकी मर्जी के कर रहे थे?” भौंचक्के से नरेंद्र मोदी ने मुझे कुछ पल देखा, फिर मेरा हाथ अपने हाथ में दबाए एक जोरदार ठहाका लगाया. यह अट्टहास था उन पत्रकारों पर जो बिना कुछ सोचे विचारे, महज भेड़चाल में ‘एंटी-मोदी कैंपेन’ का हिस्सा बने हुए थे. अपनी हिंदुत्व की प्रयोगशाला में इस भगवा प्रेमी नेता ने सबसे ज्यादा फायदा अपनी निगेटिव पब्लिसिटी का ही उठाया.
मोदी पर सांप्रदायिक होने का आरोप जितना साबित होता है, उतना ही उनके वोटर संगठित होते हैं. यह बात उस समय भी कम ही पत्रकारों की समझ में आई थी और शायद आज भी उनकी अक्ल वैसी ही है. कम से कम सोहराबुद्दीन मर्डर केस में फंसे अमित शाह के मामले में तो ऐसा ही नजर आया. यह सब को पता है कि सोहराबुद्दीन एक दुर्दांत अपराधी था जिसका गुजरात भर के व्यापारियों पर आतंक था. मुझे याद है, जब उसकी मौत की पुष्टि हुई थी तब कई बाजारों में दिल खोल कर मिठाइयां बांटी गई थीं. इन खुशियां मनाने वालों में सिर्फ हिंदू ही नहीं, कई मुस्लिम व्यवसायी भी शरीक थे. शायद कांग्रेस को तब भी इस बात का इल्म नहीं था कि सोहराबुद्दीन मामला उनके लिए मुस्लिम वोट बटोरने में कम, भाजपा को हिंदू और व्यापारी वर्ग का वोट दिलाने में ज्यादा मददगार होगा.
चाहे चंद हफ्तों बाद गुजरात में होने वाले स्थानीय निकाय के चुनाव हों या फिर कुछ ही महीनों में बिहार विधान सभा के चुनाव, भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां अमित शाह की गिरफ्तारी का मुद्दा उठा सकती हैं. बिहार के बारे में तो अभी से कोई अटकल लगाना जल्दबाजी होगी, लेकिन गुजरात में यकीनन भाजपा को इसका फायदा मिलेगा. एक तरफ यह सवाल बेशक उठे कि गुजरात के पूर्व गृहमंत्री की गिरफ्तारी और उससे मचे हंगामे का फायदा किस चुनाव में किसे मिलेगा, लेकिन दूसरी तरफ यह नहीं भूलना चाहिए कि पत्रकारों की कलम की धार और प्रहार तथाकथित सेक्युलरवादियों की वाहवाही चाहे जितनी बटोर ले, हकीकत यह है कि उसकी इसी धार का प्रयोग वे भी कर रहे हैं जिन्हें ‘सांप्रदायिक’ बता कर निशाने पर रखा जा रहा है और यही मीडीया की हार है.